क्षेत्रवाद,क्षेत्रवाद की प्रकृति, kshetravaad ki prakrti, nature of regionalism in hindi, Class 12th , Political Science- MP BOARD

क्षेत्रवाद की प्रकृति 

क्षेत्रवाद की प्रकृति को समझने के लिये उसकी प्रकृति को समझना आवश्यक  है– 

क्षेत्रवाद,क्षेत्रवाद की प्रकृति

क्षेत्रवाद की विशेषताओं से विशेष अनुराग

यह प्राकृतिक स्वभाव है कि मनुष्य जहाँ रहने लगता है उसे उस स्थान में रहने वाले व्यक्तियों से अपनापन हो जाता हैवह उन्हीं के अनुरूप आचार, व्यवहार, धर्म, संस्कृति का पालन करने लगता हैपीढ़ियाँ बीत जाने पर ये विशेषताएँ उसके वंशजों में चारित्रिक गुणों के रूप में स्थायी भाव ले चुके होते हैंयह जहाँ क्षेत्रीय अनुराग को बढ़ाती है तो दूसरी ओर संकीर्ण मनोवृत्ति को बढ़ावा देती हैइसके प्रति अनुराग इतना तीव्र होता है कि उसके किसी अंश को आघात पहुँचाने पर तीव्र प्रतिक्रिया उत्पन्न होने लगती है यह क्षेत्रीयता है । 

और पढ़ें – क्षेत्रवाद क्या है

क्षेत्रवाद का समान आचार व्यवहार

किसी क्षेत्र विशेष में सदियों से रहने वाले परिवार के लोगों के आचारव्यवहार में समानता जाती हैयह भावना किसी वंशानुक्रमण प्रक्रिया के माध्यम से नहीं अपितु प्राकृतिक गुणों और अपने आसपास के वातावरण के निरंतर  अपितु प्राकृतिक गुणों और अपने आसपास के वातावरण के निरंतर पड़ते प्रभाव से जाती है और भाषा, बोलियाँ, रहनसहन के माध्यम से व्यक्ति की सामाजिक व्यक्तिगत अन्तः क्रियाओं द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में हस्तांतरित होती रहती है । 

क्षेत्रवाद की भाषा और बोलियों में समानता-

 क्षेत्रीयता एक सीखा हुआ व्यवहार है, जो भाषा और बोलियों के माध्यम से एकदूसरों को जोड़ती है इससे सामान्य संस्कृति उपजती है और इसी से वहाँ के निवासियों में कुछ सामान्य व्यवहार, आचरण, विशिष्टता धारण करने लगती हैं। 

क्षेत्रवाद से क्षेत्रीयता का दुहरा स्वरूप-

क्षेत्रीयता की प्रकृति की दो विशेषताएँ या दृष्टिकोण होते हैं, प्रथम तो यह कि क्षेत्रीयता की मात्रा उदार से उग्र तक होती रहती है यह कभी इतना उदार हो जाता है कि वह कई समान संस्कृतियों राष्ट्रों को अपनी बाँहों में भर लेने से नहीं हिचकिचाता किन्तु उसके सम्मान या गौरव पर ठेस पहुँचने हेतु किये गये किसी भी प्रयास का वह तीव्र उग्रता से जवाब देने में देरी नहीं करता

इस स्थिति में वह अपने क्षेत्रीय हितों की रक्षार्थ राष्ट्रहित की बलि चढ़ा देने में तनिक भी संकोच नहीं करता । इसलिये उदार क्षेत्रीय भावना केवल उस क्षेत्र के लिये हितकर मानी जाती अपितु इससे राष्ट्रीय एकता को बल प्राप्त होता है

क्षेत्रवाद से संकीर्ण मनोवृत्ति एवं पृथक्कतावाद के गुण समाहित-

 क्षेत्रीयता जहाँ समाज के क्षेत्र विशेष को  समानता और सामाजिक न्याय के साथ एकता के सूत्र में जोड़ने का कार्य करती हैवहाँ क्षेत्रीय जनों में अपने को विशिष्ट समझने एवं अपने क्षेत्र के प्रति ही संवेदनशील बनने की संकीर्ण मनोवृत्ति को जन्म देती है

यहीं से पृथक्कतावादी विचारधारा जन्म लेती है जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए घातक सिद्ध हो सकती हैउत्तर पूर्वी भारत व दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में इस विचारधारा के पनपने के संकेत पूर्व में मिल चुके हैं

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